वांछित मन्त्र चुनें

वि॒भूर्मा॒त्रा प्र॒भूः पि॒त्राश्वो॑ऽसि॒ हयो॒ऽस्यत्यो॑ऽसि॒ मयो॒ऽस्यर्वा॑सि॒ सप्ति॑रसि वा॒ज्यसि॒ वृषा॑सि नृ॒मणा॑ऽअसि। ययु॒र्नामा॑ऽसि॒ शिशु॒र्नामा॑स्यादि॒त्यानां॒ पत्वान्वि॑हि॒ देवा॑ऽआशापालाऽए॒तं दे॒वेभ्योऽश्वं॒ मेधा॑य॒ प्रोक्षि॑तꣳ रक्षते॒ह रन्ति॑रि॒ह र॑मतामि॒ह धृति॑रि॒ह स्वधृ॑तिः॒ स्वाहा॑ ॥१९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒भूरिति॑ वि॒ऽभूः। मा॒त्रा। प्र॒भूरिति॑ प्र॒ऽभूः। पि॒त्रा। अश्वः॑। अ॒सि॒। हयः॑। अ॒सि॒। अत्यः॑। अ॒सि॒। मयः॑। अ॒सि॒। अर्वा॑। अ॒सि॒। सप्तिः॒। अ॒सि॒। वा॒जी। अ॒सि॒। वृषा॑। अ॒सि॒। नृ॒मणाः॑। नृ॒मना॒ इति॑ नृ॒ऽमनाः॑। अ॒सि॒। ययुः॑। नाम॑। अ॒सि॒। शिशुः॑। नाम॑। अ॒सि॒। आ॒दि॒त्याना॑म्। पत्वा॑। अनु॑। इ॒हि॒। देवाः॑। आ॒शा॒पा॒ला॒ इत्या॑शाऽपालाः। ए॒तम्। दे॒वेभ्यः॑। अश्व॑म्। मेधा॑य। प्रोक्षि॑त॒मिति॑ प्रऽउ॑क्षितम्। र॒क्ष॒त॒। इ॒ह। रन्तिः॑। इ॒ह। र॒म॒ता॒म्। इ॒ह। धृतिः॑। इ॒ह। स्वधृ॑ति॒रिति॒ स्वःऽधृ॑तिः। स्वाहा॑ ॥१९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:22» मन्त्र:19


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (आशापालाः) दिशाओं के पालनेवाले (देवाः) विद्वानो ! तुम जो लोग (मात्रा) माता के समान पृथिवी से (विभूः) व्यापक (पित्रा) पिता रूप पवन से (प्रभूः) समर्थ और (अश्वः) मार्गों को व्याप्त होनेवाला (असि) है, (हयः) घोड़े के समान शीघ्र चलनेवाला (असि) है, (अत्यः) जो निरन्तर जानेवाला (असि) है, (मयः) सुख का करनेवाला (असि) है, (अर्वा) जो सब को प्राप्त होने हारा (असि) है, (सप्तिः) मूर्तिमान् पदार्थों का सम्बन्ध करनेवाला (असि) है, (वाजी) वेगवान् (असि) है, (वृषा) वर्षा का करनेवाला (असि) है, (नृमणाः) सब प्रकार के व्यवहारों को प्राप्त कराने हारे पदार्थों में मन के समान शीघ्र जानेवाला (असि) है, (ययुः) जो प्राप्ति कराता वा जाता ऐसे (नाम) नामवाला (असि) है, जो (शिशुः) व्यवहार के योग्य विषयों को सूक्ष्म करती, ऐसी (नाम) उत्तम वाणी (असि) है, जो (आदित्यानाम्) महीनों के (पत्वा) नीचे गिरता (अन्विहि) अन्वित अर्थात् मिलता है, (एतम्) इस (अश्वम्) व्याप्त होनेवाले अग्नि को (स्वाहा) सत्यक्रिया से (देवेभ्यः) दिव्य भोगों के लिये तथा (मेधाय) अच्छे गुणों के मिलाने, बुद्धि की प्राप्ति करने वा दुष्टों को मारने के लिये (प्रोक्षितम्) जल से सींचा हुआ (रक्षत) रक्खो, जिससे (इह) इस संसार में (रन्तिः) रमण अर्थात् उत्तम सुख में रमना हो (इह) यहाँ (रमताम्) क्रीड़ा करें तथा (इह) यहाँ (धृतिः) सामान्य धारण और (इह) यहाँ (स्वधृतिः) अपने पदार्थों की धारणा हो ॥१९ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य पृथिवी आदि लोकों में व्याप्त और समस्त वेगवाले पदार्थों में अतीव वेगवान् अग्नि को गुण, कर्म और स्वभाव से जानते हैं, वे इस संसार में सुख से रमते हैं ॥१९ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(विभूः) व्यापकः (मात्रा) जननीवद् वर्त्तमानया पृथिव्या (प्रभूः) समर्थः (पित्रा) वायुना (अश्वः) योऽश्नुते व्याप्नोति मार्गान् सः (असि) अस्ति। अत्र सर्वत्र व्यत्ययः (हयः) हय इव शीघ्रगामी (असि) (अत्यः) योऽतति सततं गच्छति सः (असि) (मयः) सुखकारी (असि) (अर्वा) यः सर्वानृच्छति सः (असि) (सप्तिः) मूर्त्तद्रव्यसम्बन्धी (असि) (वाजी) वेगवान् (असि) (वृषा) वृष्टिकर्त्ता (असि) (नृमणाः) यो नृषु नेतृषु पदार्थेषु मन इव सद्योगामी (असि) (ययुः) यो याति सः (नाम) अभ्यसनीयः (असि) (शिशुः) यः श्यति तनूकरोति सः (नाम) वाग्। नामेति वाड्नामसु पठितम् ॥ (निघं०१.११) (असि) (आदित्यानाम्) मासानाम् (पत्वा) योऽधः पतति सः (अनु) (इहि) एति (देवाः) विद्वांसः (आशापालाः) य आशा दिशः पालयन्ति (एतम्) वह्निम् (देवेभ्यः) दिव्यभोगेभ्यः (अश्वम्) व्याप्तिशीलम् (मेधाय) सङ्गमाय बुद्धिप्रापणाय दुष्टहिंसनाय वा (प्रोक्षितम्) जलेन सिक्तम् (रक्षत) (इह) (रन्तिः) रमणम् (इह) (रमताम्) क्रीडतु (इह) (धृतिः) धैर्य्यम् (इह) (स्वधृतिः) स्वेषां धारणम् (स्वाहा) सत्यया क्रियया ॥१९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे आशापाला देवाः ! युयं यो मात्रा विभूः पित्रा प्रभूरश्वोऽसि हयोऽस्यत्योऽसि मयोऽस्यर्वाऽसि सप्तिरसि वाज्यसि वृषाऽसि नृमणा असि ययुर्नामाऽसि शिशुर्नामास्यादित्यानां पत्वाऽन्विहि एतमश्वं स्वाहा देवेभ्यो मेधाय प्रोक्षितं रक्षत येनेह रन्तिरिह रमतामिह धृतिरिह स्वधृतिः स्यात्॥१९ ॥।
भावार्थभाषाः - ये मनुष्याः पृथिव्यादिषु व्यापकं सर्वेभ्यो वेगवद्भ्योऽतिशयेन वेगवन्तं वह्निं गुणकर्मस्वभावतो विजानन्ति, ते सुखेनेह क्रीडन्ति ॥१९ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे पृथ्वीमध्ये व्याप्त व संपूर्ण गतिमान पदार्थांमध्ये अधिक गतिमान अशा अग्नीचे गुण, कर्म, स्वभाव जाणतात ती या जगात सुखाने राहतात.